जल प्रदूषण का कारण
जल प्रदूषण(water pollution)जल की गुणवत्ता की कमी को दर्शाता है इसके कारण जल में बहुत से ऐसे पदार्थ हैं जो जल में घोलकर मानव शरीर को तथा जीव जंतुओं को हानिकारक पहुंचाते हैं।
डब्ल्यूएचओ की परिभाषा के अनुसार
जब जल में बाहरी पदार्थ जैसे प्राकृतिक तथा अन्य स्त्रोतो से घूल जाते हैं वह जहरीले हो जाते हैं और वह जल में घूलकर में ऑक्सीजन को कम कर देते हैं और बीमारी फैलाने का काम करते हैं
जल प्रदूषण के प्रभाव
(A)यूट्रॉफिकेशन
यह किसी झील या जल के स्त्रोत में प्राकृतिक वृध्दता है,जिसका जैविक आवर्धन है जोकी जल में नाइट्रोजन फास्फोरस जैसे पोषक के मिलने से होता है। यह जल की गुणवत्ता की कमी का मुख्य कारण है इसका सबसे अधिक प्रभावी लक्षण हाइपोक्सिया है तथा हानिकारक शैवाल वृद्धि है,जिससे जीव जंतु हो तथा जलीय पौधों को हानि पहुंचती है।जल में पोषको की अत्यधिक वृद्धि से जलीय पादप शैवाल तथा समुद्री पीड़को के अत्यधिक वृद्धि होती है, जिससे कि जलीय उत्पादन,प्रजाति संगठन व कोरल में वृद्धि की कमी होती जाती है।तथा जल में मृत स्थल बन जाता है। जहां पर ऑक्सीजन नहीं होती और उनकी पूरी संगठन समाप्त हो जाती हैं।
जल स्त्रोत के पास उर्वरक वाहित होते हैं,तो ये जल की जलीय पौधों की वृद्धि करते हैं जो जल की सारी ऑक्सीजन लेकर अन्य जलीय जीव को नष्ट करने लगते हैं जैसे-मछली,शैवाल इत्यादि।शैवालो की अत्यधिक वृद्धि सूरज की रोशनी को पानी की सतह तक नहीं पहुंचने देती है,जिससे कि जलीय पौधे व जीव जंतु नीचे तैरने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे जलीय पादप को प्रकाश संश्लेषण नहीं मिल पाता है।कुछ शैवाल हानिकारक होते हैं तथा जहरीले भी होते हैं। यह खाद्य श्रंखला के द्वारा दूसरे जीवो को खाकर उनके प्रजाति को हानि पहुंचाते हैं तथा नष्ट कर देते हैं।
(B)जैविक आवर्धन
जहरीले पदार्थों की मात्रा की क्रमिक पोषण स्तर में वृद्धि को जैविक आवर्धन कहते हैं।जब किसी जीव के भोजन में हानिकारक पदार्थो जैसे DDT एव पारा तथा अन्य पदार्थों की मात्रा अधिक हो जाती है तो जैविक संवर्धन या जैविक आवर्धन कहते हैं।
(C)जल प्रदूषण का मानव पर प्रभाव
जल प्रदूषण से मानव को निम्नलिखित प्रभाव होता है
(1) पेयजल में फ्लोराइड की कमी से दांत सड़ने लगते हैं आयन की सांद्रता 20 ppm से कम होने पर दांतो का रंग भूरा तथा 10 ppm से अधिक होने पर हड्डियों तथा दातो को प्रभावित करते हैं।
(2) शीशे की सांद्रता 50 ppm से अधिक होने पर वृक्क,यकृत तथा प्रजनन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
(3) 500 ppm से अधिक होने पर सल्फेट की मात्रा बढ़ जाती है जो शरीर को अधिक हानि पहुंचाते हैं।
(4) पेयजल मैं फ्लोराइड की अधिक मात्रा कंकाली या फ्लोरोसिस करती है।
(5) जल प्रदूषण से बीमारियां पैदा होती हैं जिसमें से एक बीमारी का नाम है ईताई ईताई है जो कैश केडियम द्वारा जापान में होने वाली बीमारी है जिससे हस्तियां मुलायम हो जाती हैं और मानव कमजोर हो जाते हैं।
(6) जल प्रदूषण से मीनामाता रोग भी होता है या पारे के द्वारा होता है या प्रथम बार सन् 1953 में जापान में मीनामाता शहर में पाई गई जिसके बाद इस बीमारी का नाम मीनामाता रोग रखा गया मीनामाता खाड़ी में या समुद्र में पाए जाने वाली मछली को खाने से होता है इस बीमारी में तंत्रिका खत्म हो जाती है जिसके कारण बिना मटर शहर में 100 लोगों से अधिक की मृत्यु हो चुकी है।
(7) जल प्रदूषण से ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक भी बीमारी होती है जो लाल रुधिराणुओ के हिमोग्लोबिन में नाइट्रेट की मात्रा 50ppm से अधिक होने से होता है। यह अक्रीय मेथेमोग्लोबिन बनाती है जो ऑक्सीजन के परिवहन को रोकती है।
(8) प्रदूषित जल में कई रोग उत्पन्न होते हैं जिसमें से भारत में होने वाले सबसे ज्यादा है हैजा टाइफाइड हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
जल प्रदूषण का मापन
घुलनशील ऑक्सीजन
जल में नियंत्रित मात्रा में घुलनशील ऑक्सीजन होती है, इसकी सांद्रता जल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती जाती है इसकी सांद्रता 5 ppm कम होने से मछलियों पर प्रभाव पड़ता है ठंडे जल में DO की मात्रा 10ppm तक होती है जलीय पादप में श्वसन हेतु DO का उपयोग करते हैं,यदि जल में कार्बनिक पदार्थ अधिक होगा तो सूक्ष्मजीव भी अत्यधिक वृद्धि कर ज्यादा ऑक्सीजन की मांग करेंगे परंतु ऑक्सीजन न मिलने पर अनाक्सी जीवाणु इस कार्बनिक पदार्थ को अपघटित करके हानिकारक गंध वाले पदार्थ का निर्माण करेंगे,जो मानव के लिए बहुत ही हानिकारक होता जाता है।आक्सी जीवाणु भी इन्हें अपघटित कर सकते हैं,DO की उचित मात्रा 5-6 ppm हैं।
जल प्रदूषण नियंत्रण के मापन जल प्रदूषण नियंत्रण के मुख्य मापन निम्नलिखित हैं
(अ) संयुक्त अपशिष्ट जल उपाय – अपशिष्ट जल के शुद्धीकरण हेतु भौतिक जैविक व रासायनिक प्रक्रियाएं प्रयोग में लाई जाती है जो भौतिक रासायनिक व जैविक प्रदूषको को खत्म करती है।
- सबसे पहले जल को छाना जाता है जिससे इसमें बड़े पदार्थ अलग हो जाते हैं फिर उससे रेत द्वारा छाना जाता है।
- जब जल को बड़े से टैंक में ठहराया जाता है। जिससे मोटी गंदगी तली में बैठ जाती है तथा सतह पर आए तेल तथा ग्रीस जैसे पदार्थों को हटाया जाता है, तली में बैठी गंदगी की कीचड़ को बायोगैस में परिवर्तित किया जाता है।
- जल में हवा पंप की जाती है जिससे वायवीय जीवाणु वृद्धि करते हैं यह जल में अपशिष्ट को अपघटित करके उसे तली में बैठा देते हैं।इससे क्रियाशील कीचड़ कहते हैं जिसमें 97% जल होता है।
(ब)जल एक्ट बचाव व नियंत्रण
जल प्रदूषण नियंत्रण एक्ट है जो वर्ष 1974 में बना था इसमें वर्ष 1988 में संशोधन किया गया।
(स)जल सैल एक्ट बचाव का नियंत्रण
यह वर्ष 1970 में बना यह एक्ट औद्योगिक क्रियाओं में प्रयोग किए जाने वाले जल के सभी स्त्रोतों व मात्रा के बारे में सूचना संग्रह करता है केंद्रीय बोर्ड व प्रवेश बोर्ड द्वारा आबंटन किया जाता है। इसे वर्ष 2003 में संशोधित किया गया।
(द)रेडियोधर्मिता जैविक और रासायनिक प्रदूषण जल में से अवशोषण विधुत लेपन,आयन एक्सचेंज व पुनर्वित्तीय वितरण विधीयों द्वारा निकाले जा सकते हैं, जैव प्रौद्योगिकी का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है।
(इ) गंगा एक्शन प्लान
गंगा नदी भारत में धार्मिक भावना से जुड़ी हुई है पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 1984 में इस में प्रदूषण कम करने हेतु एक GAP बनाया जो वर्ष 1985 अप्रैल में मानीत हुआ। यह 100% केंद्र द्वारा सौजन्य स्कीम है परंतु 31 मार्च 2000 को वापस भी ले लिया क्या।
(फ)यमुना एक्शन प्लान
यह जापान और भारत सरकार का सहयोग पर प्रोजेक्ट है जो भारत में सबसे बड़ी नदी पुनः संचयन प्रोजेक्ट है जापानीस बैंक फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन जापान ने इस प्रोजेक्ट हेतु 17 बिलियन मैन की सहायता की जिसे भारत सरकार के पर्यावरण व वन विभाग के नेशनल रिवर कंजर्वेशन डायरेक्टोरेट द्वारा संचालित किया जा रहा है,वर्ष 1993 में इसका प्रथम चरण के बीच हुआ था।अप्रैल 2000 में पूरा हुआ परंतु बाद में फरवरी 2003 तक बढ़ाया गया।
तो दोस्तो आपको मेरी दी गई जानकारी कैसी लगी मुझे जरूर कमेंट करे।
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