सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ-कहाँ प्राप्त हुए?
सिन्धु घाटी सभ्यता
भूवैज्ञानिक एव विद्वानो का मानना था की मानव के जीवन की शुरुआत आर्यो से हुआ।लेकिन सिन्धु घाटी के साक्ष्यो के बाद उनका भ्रम दूर हो गया।और इन्हे यह मानना पड़ा की आर्यो के आगमन से वर्षो पहले सभ्यता यहाँ जिन्दा थी और इस सभ्यता को सिन्धु सभ्यता या सैन्धव सभ्यता कहा गया।
सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज –
सन् 1875 मे प्रसिध्द पुरातत्वेक्ता सर एलेक्जेंडर कार्निघंम हड़प्पा के खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ।यहाँ पर उन्हे मुहर मे लिखे लिपि और भवनो के अवशेष प्राप्त हुआ।जिसे आधार मानते हुए उन्होंने एक प्राचीन शहर होने की कल्पना की।
सर कनिंघम के खोज के पश्चात 50-60 वर्षो तक पूरा उत्खनन नही किया गया।
सन् 1921 मे जान मार्शल के सहयोगी दयाराम सहानी ने उत्खनन की शुरुआत की उसके बाद अनेक पुरातत्वो ने अलग-अलग जगह खुदाई की सन् 1922 मे मोहनजोदडो राखालदास बनर्जी,1928-33 मे माधवस्वरूप वत्स ने हड़प्पा अनेको स्थल पर खोज की

Mohenjo-daro
हड़प्पा संस्कृति की भौगोलिक एव प्रसार
सन् 1921 मे खुदाई के दौरान सर दयाराम सहानी को दो स्थल सबसे पहले नजर आए हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो।
सिन्धु घाटी के सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार मे उत्तर से दक्षिण तक 1100 किमी तक जम्मू से नर्मदा तक के भू भाग मे फैला हुआ था।तथा पूर्व से पश्चिम तक सहारनपुर से बलुचिस्तान तक फैला था।
सिन्धु घाटी से सम्बंधित निम्नलिखित स्थल
- बलुचिस्तान
- सिन्ध
- पंजाब
- हरियाणा
- राजस्थान
- सौराष्ट्र
- गुजरात
- गंगाघाटी
- काठीयाबाड
सिन्धु सभ्यता का पुरा क्षेत्रफल 13,00,000 तक था जो मैसोपोटामिया की सभ्यता से बहुत बड़ा था।
सिन्धु घाटी की सभ्यता मे हड़प्पा और मोहनजोदडो से अवशेष मिलने के बाद 20 जगहो पर खुदाई की गई।
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- चन्हुदाडो
- कोटडिजी
- सुत्कगेनडोर
- डायरक्टर
- लोथल
- रंगपूर
- रोजदि
- सुरकोटडा
- मालवड़
- संघोल
- रोपड
- बाडा
- राखीगडी
- वणवाली
- कालीबंगा
- आलमगीरपूर
- बड़गाव एव अम्बखेडी
- मीत्ताथल
सभी के बारे मे विस्तार से जानते है।
1.हड़प्पा –
सिन्धु सभ्यता मे सबसे पहले अवशेष हडप्पा मे प्राप्त हुए।हड़प्पा नामक जगह रावी नदी के किनारे मुल्तान जिले मे है।सर एलेक्जेंडर कार्निघंम के रिपोर्ट के अनुसार हड़प्पा के खण्डर एव टीले निम्नवत है-
टीला ए, टीला बी,टीला सी,टीला डी,टीला,ई,टीला एफ,थाना टीला
सर एलेक्जेंडर कार्निघंम के अनुसार हड़प्पा 5 किमी के दायरे तक फैला हुआ था।
हड़प्पा मे सन् 1928-1933 मे माधव स्वरूप वत्स ने उत्खनन के दौरान दो और टीला को पाया टीला जी और टीला एच
उत्खनन के दौरान टीलो से प्राप्त अवशेष
टीला A व B
- टुटे हुए मटके
- ईटो का बना कुआ
- नालियां
- मानव अस्थि पंजर
- मिट्टी की मूर्ति
टीला सी
- मिट्टी की टूटी मूर्ति
- अन्नागार
- मिट्टी और कच्ची ईटो की भट्टी
- कारीगरो की बस्ती
टीला डी
- दुधिया पत्थर की मुद्राए
- तांबे व कासे की मूर्तियां
- पक्की मिट्टी से बनी पशुओ की मूर्तियां
टीला ई व थाना टीला के अवशेषो का कोई प्रमाण नही मिल सका।
टीला एफ
- कासे के बर्तन
- खण्डित इमारते
- चित्रित मिट्टी के बर्तन
- दो तांबे का पहिया
- भट्टीयाॅ
- विशाल घर
टीला जी
- एक श्रृग पशु
- फियास की बनी मुद्रा छाप
- मानव अस्थि
- मिट्टी के बर्तन
अब बात करेंगे अलग-अलग स्थल की जहां अवशेष मिले।
2.मोहनजोदड़ो
सिन्धी भाषा मे मोहनजोदड़ो का अर्थ है मृतको का टीला।मोहनजोदड़ो हड़प्पा संस्कृति मे सबसे प्रमुख है।यह सिन्धु नदी के पूर्वी किनारे पर हड़प्पा स्थल से 483 किमीदूर पाकिस्तान के लरकाना (सिन्ध) जिले मे स्थित है।यह ढाई वर्गकिलोमीटर मे फैला हुआ था।सन् 1923 मे राखालदास बनर्जी व 1946 मे ड़ा हीलर ने मोहनजोदड़ो ने खुदाई की जहां उन्हे कई टीलो के अवशेष प्राप्त हुए।जहां उन्हे सबसे ऊंचा टीला स्तूप टीला प्राप्त हुआ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अवशेष
- पक्की ईटो से बना बुर्ज
- भवनो के अवशेष
- एक विशाल स्नानागार (40 फिट लम्बाई × 23 फिट चौड़ाई × 8फिट गहराई )
- एक विशाल अन्नागार
- एक कृत्रिम धरातल से घोड़े के अवशेष
- नाव की आकृति
- बुने हुए सुती कपड़े के वस्त्र
- गाड़ी और घोड़े के टेराकोट नमूने
- दूधिया पत्थर से बनी दाड़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति
- नृत्य की मुद्रा मे बनी लड़की की कासे की मूर्ति
मोहनजोदड़ो की जनसंख्या 35,000 से 1,00,000 तक आकी गई है।
चन्हुदाड़ो
यह स्थल मोहनजोदड़ो से दक्षिण पूर्व मे 130 किलोमीटर दूर सिन्धु नदी के किनारे स्थित है।चन्हुदाड़ो मे तीन टीले खोजे गए थे।यहां सिन्धु संस्कृति के साथ साथ झूकर व झांगर भी प्राप्त हुए।
चन्हुदाड़ो मे उत्खनन से प्राप्त अवशेष
- रंगीन चित्रो से युक्त बरतनो के टुकड़े
- पत्थर के टुकड़े
- मुद्राए
- शंख और हाथी दांत की वस्तुए
- आभूषण और मनके बनाने का कारखाना
- पकाई गई ईटो के भवन
- दवात जैसा छोटा पात्र
- लोहे के वस्तुओ के निमार्ण के लिए शिल्प केन्द्र
कोटदिजी
सिन्धु सभ्यता का कोटडिजी नामक स्थल सिन्ध के खैरपूर से दक्षिण की ओर मोहनजोदड़ो के 40 किलोमीटर दूर स्थित है।यहां पर प्राप्त हुए अवशेष हड़प्पा संस्कृति के अवशेषो से सम्यता रखते है।
कोटदिजी के उत्खनन से प्राप्त अवशेष
- चित्र धूसरित भाण्ड़
- मुहर एव मुद्राए
- वाणाग्र
- पत्थर द्वारा निर्मित मकान की नींव
- कच्ची ईट से निर्मित भवन
सुत्कगेनडोर
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल पाकिस्तान में कराची से लगभग 480 किलोमीटर पश्चिम एव मकरान समुद्र तट से 56 किलोमीटर उत्तर मे दाश्त नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है।
यहाँ बन्दरगाह एक दुर्ग एव नगरीय सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए।
डाबरकोट
सिन्धु घाटी सभ्यता का डाबरकोट नामक स्थल कान्धार व्यपारिक मार्ग पर सिन्धु नदी से लगभग 200 किलोमीटर दूर लोरानाई के दक्षिण मे झोव नामक घाटी मे खोजा गया।डाबरकोट नामक सिन्धु सभ्यता के स्थल मे नगर योजना के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हुये।
लोथल
सिन्धु घाटी सभ्यता का प्रमुख माना जाने वाला लोथल गुजरात राज्य मे खम्भात की खाड़ी के पास स्थित है।
लोथल मे खुदाई के दौरान प्राप्त अवशेष
- मुहर
- भाण्ड
- उपकरण
- भवनो और दुकानो के खण्डर
- अन्नागार
- ईटो से बना कृत्रिम बंदरगाह
- धान की खेती चावल का भुसा
- अग्निवेदीयो के साक्ष्य
- पुरूष और महिलाओ के एक साथ कब्र
- अश्व के टेराकोटा
1857 मे एस आर राव ने लोथल मे खुदाई की थी।यहां पर गोदीवाड़ा एव भवनो तथा दुकानो के भग्नावशेष से बस्ती होने का प्रमाण मिलते है।
रंगपूर
सिन्धु घाटी सभ्यता का यह स्थल भादर नदी के किनारे लोथल से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर पूर्व और अहमदाबाद से दक्षिण पश्चिम मे स्थित है।रंगपूर मे उत्खनन 1954 मे एस आर राव ने किया था।एस आर राव ने बताया की रंगपूर की सभ्यता की स्थापना लोथल के बाढ पीडितो के आकर बस जाने से हुई।
रंगपूर मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- कच्ची ईटो के सुरक्षा दुर्ग
- मिट्टी के चित्रित बर्तन
- हड्डी एव हाथी दांत के आभूषण
- नासिया
- चावल की भूसी
रोजदि
सिन्धु सभ्यता का यह स्थल राजकोट से से दक्षिण मे भादर नदी के किनारे रंगपूर के निकट स्थित है।इस स्थल मे भयंकर अग्नि काण्ड के साक्ष्य मिले है।मकान के चारो ओर लगी पत्थर की घेराबंदी इस जगह को असुरक्षित होने का प्रमाण देते है।इस तरह की घेराबंदी सिन्धु सभ्यता के किसी स्थल मे देखने को नही मिली है।
रोजदि मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- लाल एव काली मिट्टी के बर्तन
- विभिन्न आभूषण
- नगर व्यवस्था के पर्याप्त साक्ष्य
- भीषण अग्नि काण्ड के साक्ष्य
सुरकोटड़ा
यह स्थल को गुजरात के कच्छ जिले मे खोजा गया।इस स्थल से बडी चट्टान से ढकी कब्र मिली।
सुरकोटड़ा मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- अग्नि काण्ड के साक्ष्य
- हड्डीयो से भरा मिट्टी एव तांबे का कलश
- रंग और चित्र से सज्जित बर्तन
- आभूषण
- चट्टान से ढका कब्र
- गढी और आवासीय भवनो के भग्नावशेष
सुरकोटड़ा की सभ्यता रोजदि सभ्यता से मिलती जुलती थी।
संघोल
यह स्थल चंडीगढ से 40 किलोमीटर दूर स्थित है।यहां प्राप्त अवशेष सभ्यता को अंतिम चरण की सभ्यता के मिले थे।
संघोल मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- ताम्र एव पत्थर के बने उपकरण
- हथियार एव मुहर
- मिट्टी के बर्तन
- मिट्टी से बने आभूषण
यहां प्राप्त अवशेष साक्ष्य सभ्यता को लुप्त होने के प्रमाण देते है।
मालवण
यह स्थल ताप्ती नदी के मुहाने पर कठियावाड़ के सूरत जिले मे स्थित है।
मालवण मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- एक नहर
- एक बन्दरगाह
- मिट्टी के बर्तन
- कच्ची ईट का चबूतरा
- आभूषण
रोपड़
यह ऐतिहासिक स्थल पंजाब मे शिवलिक पहाड़ी पर स्थित है।यहां सभ्यता के दो चरण प्राप्त हुऐ।
रोपड मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- कच्ची ईटो से निर्मित मकान
- कुटी हुई मिट्टी और कच्ची ईट की मकान की दिवार
- हड़प्पा की तरह मिट्टी के आभूषण
- ताम्र कुल्हाड़ी
- एक मुहर
बाड़ा
यह स्थल पंजाब के रोपड़ के निकट स्थित है।
बाड़ा मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- पत्थर से निर्मित मकान की नींव
- कच्ची ईट की दिवारे
- मिट्टी के बर्तन
- मिट्टी के आभूषण
राखीगड़ी
यह स्थल हरियाणा के जींद मे स्थित है।यहां पर हड़प्पा संस्कृति के बाद के अवशेष साक्ष्य रूप से पाये गये है।यहां उत्खनन के दौरान मुहर प्राप्त हुई।ये मुहर लिपिबद्ध थी जिसे पढ़ पाना मुश्किल था।
वणवाली
यह स्थल हरियाणा राज्य के हिसार मे स्थित है।आर आर बिष्ट ने 1973-74 मे इस जगह की खुदाई की।जिसके बाद यहां निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए।
- मिट्टी के बर्तन
- ताम्बे का हथियार
- ताम्र उपकरण
- मनके
- वाणाग्र
- तोलने का बाट
- लिपिबद्ध मुहर
- मुर्ति के अवशेष
आलमगीरपूर
यह स्थल उत्तर प्रदेश के मेरठ मे हिंडन नदी के किनारे स्थित है।यहां पर खुदाई के दौरान मिट्टी के बर्तन,आभूषण, कच्ची मिट्टी की दिवारे खोजी गई।
कालीबंगा
यह सिन्धु सभ्यता का एक ऐतिहासिक स्थल है।जो राजस्थान के गंगानगर जिले मे स्थित है।जो घग्घर नदी के किनारे स्थित है।यहां उत्खनन से लकड़ी की नालियां मिली।यहां पर प्राप्त आभूषण,उपकरण,हथियार जैसी चीजे प्राप्त हुई जो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से मिलती जुलती है।
कालीबंगा मे खुदाई के दौरान प्राप्त अवशेष
- मिट्टी के बर्तन
- लकड़ी की नालियाँ
- आभूषण
- हथियार
- मेड़ो युक्त खेत
- कच्ची ईटो के चबूतरे
- सड़को के अवशेष
बड़गाव और अम्बखेडी
यह दोनो स्थल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के यमुना नदी की सहायक नदी के मस्करा तट पर किनारे स्थित है।
बड़गाव और अम्बखेडी मे खुदाई के दौरान प्राप्त अवशेष
- काचली की चुडीया
- ताबे की छल्ले
- मिट्टी की चित्रित बर्तन
- मुहर एव हड्डी से भरे कलश
मीत्ताथल
यह क्षेत्र हरियाणा के भिवानी नामक स्थान पर स्थित है।
मित्ताथल मे उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेष
- गडी
- कच्ची मिट्टी की ईटे
- हड़प्पा की तरह मिट्टी के बर्तन
- ताम्र उपकरण के हथियार
- हाथी दांत के आभूषण
- मिट्टी के खिलौने
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